समर्पण ब्लॉग में आपका स्वागत हैं मुझे आशा हैं आपको मेरी लिखी कवितायेँ पसंद आएँगी आप से अनुरोध हैं कृपया ब्लॉग के सभी पेज की पोस्ट ज़रूर देखें 'पढ़ें और कमेंट करें 'आप का स्नेह और साथ ऐसे ही बना रहें ....आप मुझे फेसबुक और ट्विटर पर भी follow कर सकते हैं

Monday, 16 March 2020

बालकनी

'' हम सभी के जीवन में एक ना एक बार यह अहसास ज़रूर आया होगा,
वो चाहे हमारे घर की बालकनी हो या होस्टल..की
उसी एहसास को बयां करती यह पंक्तियाँ ,उम्मीद है आपको पसंद आएँगी
-----------------------------------------------------------

''में जनता हूँ वो जगह जहाँ तू रहती थी 

जब मेरे घर की बालकनी तेरी बालकनी से कुछ कहती थी 

''किसी खआब की तरहा जब तुम उस घर में रहने आई थी 

तेरी हंसी झलक मेने उस बालकनी में पाई थी 

''वो बालो को झटक कर जब तुम सुखाती थी 

गिरते बालो को अपने चेहरे से हटती थी 

''एक हवा के झोंखे से तेरे बाल बिखर जाते थे 

तेरी खिलती हंसी को जुल्फों के झरोखों से देख पाते थे 

''किसी सुहानी शाम की तरहा जब तुम बालकनी में आती थी 

मेरी बालकनी भी मुझे तेरे होने का अहसास कराती थी 

''में झट उठ खड़ा हो तैयार जाता था 

तेरा दीदार करने को मेरा दिल मचल जाता था 

''दिन भर तेरी याद में यु ही काट लेते थे 

निकलेगा चाँद मेरा,बालकनी में' इस बात से दिल थाम लेते थे

''उसको अपना बनाने के लिए ,मुझको दूर जाना था 

हाथ मांगने के लिए उसका ,कुछ कर के दिखाना था

''कुछ सालो बाद में लौट के फिर आया था 

अपनी उस बालकनी का दरवाज़ा मेने आज खुलवाया था 

''गुमसुम चुपचाप सी मेरी बालकनी आज शांत थी 

तेरी बालकनी भी लगता हैं जैसे मुझसे अनजान थी 

''अपनी ही बालकनी में जैसे में आज मेहमान था 

वो दिखी नहीं कहीं में ये सोच के हैरान था 

''एक अजीब सी ख़ामोशी का एहसास मन में आया था 

कुछ हो गया है शायद जो 'वक़्त के पन्नो ने मुझसे छुपाया था 

''तेरी बालकनी मुझे तेरा हाल ए दिल सुना गई 

जीना हैं अब अकेले ये मुझको बता गई 

''एक डर था जो मन में वो सच हो गया 

अपनी ही बालकनी में आज तन्हा हो गया 

''लगता हैं जैसे 'समय के बदलो में हैं चाँद मेरा खो गया 

देखते थे जिसे रोज़ बालकनी में वो अब किसी और का हो गया 

''वो अपनी बालकनी से खड़े होकर तुझे देखता था 

तू नहीं होती थी तो तेरी बालकनी से कुछ कहता था

''अब उस बालकनी के दरवाज़े अक्सर बंद रहतें थे 

जहाँ कभी धडकते दिल आपस में कुछ कहते थे 

''में जानता हूँ वो जगह जहाँ तू अब रहती हैं 

पर मेरे घर की बालकनी अब कुछ नहीं कहती हैं 

*************राजेश कुमार "आतिश"**************





2 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया आपका कृपया मेरे ब्लॉग को follow करे धन्यवाद

      Delete