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Wednesday, 26 August 2020

गुलाम होके भी आज़ादी का भ्रम पाले हुए हैं।


''गुलाम होके भी आज़ादी का भ्रम  पाले हुऐ हैं।

अंग्रेज़ियत का चोला खुद पे डाले हुऐ हैं।

''अपने गौरव को ललकारते कभी तो लड़ते हम।

और शान से कहते की पैरों में छाले हुऐ हैं।


''
हुए रोशन इतने 'पर नहीं उजाले हुऐ हैं।

जो देते थे कल तक दलील आज सवाले हुऐ हैं।

''वो चले हैं बनने रहनुमा रियाया का।

जिनके हाथ षड्यंत्रों में पहले से काले हुऐ हैं। 

 

''व्यास पीठ की मर्यादा भूल 'नोटों में लाले हुये हैं।

अकारथ कहानी में उलझे 'इनकी बुद्धि में जाले हुये हैं। 

''धर्म की शिक्षा जिन्हें देनी थी यहाँ पे। 

उनके मंच पर विधर्मीयों ने घेरे डाले हुये हैं। 

 

''वो पाखंडी दिखावे की संस्कृति संभाले हुऐ हैं। 

भूल गयें कितने वीरता के भाले हुऐ हैं। 

''बहन बेटियों की रक्षा का वो उपाय क्या बतायेंगें। 

जो  खुद ही जिहादियों के हवाले हुऐ हैं।  

 

**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 
 




4 comments:

  1. बहुत शानदार और यथार्थ कविता।
    राजेश भाई तुसी छा गए।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद नितिन भाई ........ब्लॉग के सभी पेज देखना ....और भी बहुत कुछ पढने को मिलेगा ...

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