‘’जो स्वयं
ललित जीवनदायनी थी।।
जो जलधर
जननी सौदामनी थी।।
‘’विष बोये
तुमने स्वयं तरंगिणी में
जो मात्
स्वरूप नारायणी थी।।
‘’फिर
विपदा बड़ी विकराल थी।
छण भर
में महाकाल थी।
‘’नगर ,कशत डूब गया सब
गली ‘डगर में उसकी चाल थी।
‘’दुःख
पीड़ा ,व्यथा बड़ी वेदना थी।
गिद्धों
के जमघट लाशो की सेजना थी।
‘’उजड़े घर
तम्बुओं में अब जीवना थी।
इस तंत्र को नही जिनसे संवेदना थी।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
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