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Wednesday, 2 September 2020

ताउम्र इन आँखों में 'उनका इंतज़ार रहा।

 


"ताउम्र इन आँखों में 'उनका इंतज़ार रहा।

 "जो शहर मे हो के भी ' मुझसे बेज़ार रहा।

"जो खोजने निकला 'सुकून के चार पल।

"नहीं कोई भी मेरा 'अब मददगार रहा।

"तन्हाई को ही अपना ' मान बेठे है हम।

 "जबसे मौसम मेरा 'ना खुशगवार रहा।

"मंज़िल की तलाश में ' जो निकला था घर से।

 " के रास्ता ही मेरा ना ' अब 'तलबगार रहा ।

" यकीं था उन पर ' वो साथ निभाएंगे ।

 पर खुद पर ही उनका ' ना ऐतबार रहा।

" बेरुखी का इलज़ाम वो लगाये है हम पर ।

 "जो मेरे क़त्ल का खुद गुनहगार रहा।

**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********


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