"ताउम्र इन आँखों में 'उनका इंतज़ार रहा।
"जो शहर मे हो के भी ' मुझसे बेज़ार रहा।
"जो खोजने निकला 'सुकून के चार पल।
"नहीं कोई भी मेरा 'अब मददगार रहा।
"तन्हाई को ही अपना ' मान बेठे है हम।
"जबसे मौसम मेरा 'ना खुशगवार रहा।
"मंज़िल की तलाश में ' जो निकला था घर से।
" के रास्ता ही मेरा ना ' अब 'तलबगार रहा ।
"
यकीं था उन पर ' वो साथ निभाएंगे ।
पर खुद पर ही उनका ' ना ऐतबार रहा।
"
बेरुखी का इलज़ाम वो
लगाये है हम पर ।
"जो मेरे क़त्ल का खुद गुनहगार रहा।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
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