''हाय हाय ये मज़बूरी
ये कट्टरपंथों की जी हुजूरी
''ये जिहाद इन्हें ललचायें
हर छोटी-छोटी बातों पे ।
रोज़ नया फतवा आयें।
‘’हाय हाय ये मज़बूरी
ये कट्टरपंथों की जी हुजूरी।.............
‘’कितने बम फोड़े इन्होनें।-2
अब खुद को ही बम से उड़ायें
''72 हूरों की चाह में
ये रोज़ जन्नत को जायें।....
''सभी मुल्ला ‘क़ाज़ी ‘और मौलाना
इन्हें यही रास्ता हैं दिखाएँ।.......
‘’हाय हाय ये मज़बूरी
ये कट्टरपंथों की जी हुजूरी।.............
''आतंकवाद और जिहाद का बंधन हैं
जो सेकुलरवाद से भी ना टूटे
''जिहादी का है क्या भरोसा।
आज गले मिले ‘ कल लुटे
''अरे गजवा ऐ हिन्द हैं उसका मकसद
फिर भी तु ना समझ पायें
''हर छोटी-छोटी बातों पे
वो इस देश को जलायें।.......
‘’हाय हाय ये मज़बूरी
ये कट्टरपंथों की जी हुजूरी।.............
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
शानदार कविता वाह!
ReplyDeleteशुक्रिया नितिन भाई
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