“चल ऐ दोस्त फिर बचपन में चले।
बस
धोखे ही मिले बड़े होके हमें।
“वही खेल
खिलोने ‘वही गुडिया वो झूले।
वो
कागज की नाँव ‘चाल
बारिश में खेले।
“टॉफी
दिलाती चार वो प्यारी आठानी।
वो
क्रिकेट का बेट वो फुटबाल पुरानी।
“चम्पक
की दुनिया ‘में लोमड़ी सयानी।
वो
कॉमिक्स के हीरो की अनोखी कहानी।
“वो पापा
की डांट वो माँ का बचाना।
पेन्सिल
के रंगों से दीवारें सजाना।
“वो
दीवारे लाँघ के गेंद लेने जाना।
वो
अंकल का हम पे जोर से चिल्लाना।
“बिजली
ना होने का नहीं होता था बहाना।
लालटेन
की रौशनी में पढना ' पढ़ाना।
‘’वो दौर
ही अलग था ‘वो अलग ही था ज़माना।
सब
अपने ही थे नहीं था कोई बैगाना।
“ज़हन में
ताज़ा आज भी बचपन की परछाइयाँ।
बस
यादे बची हैं गुम हो गई निशानियाँ।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
Very Nice n True Words
ReplyDeleteVery nice bhayya
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