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यह कविता मेने जब में स्कूल में पड़ता था 1999 में उस दौरान लिखी थी |
''जीवन हैं जैसे सूखा दीपक।
कभी यह जलता कभी यह बुझता।
कभी तो इसमें बाती होती।
कभी इसमें तेल ना होता।
''जीवन हैं जैसे फसल
किसान की लहलहाती हैं।
बाढ़ अगर आ जाए तो ,यह बह जाती हैं।
''जीवन हैं जैसे चलता
पहिया
कभी यह रुकता कभी यह चलता।
कभी तो इसमें हवा होती
कभी यह पंचर होता।
''जीवन हैं जैसे पत्थर
रस्ते का।
कभी इधर तो कभी उधर होता।
कभी तो यह महल में जड़ता।
कभी कंकड़ बन फिरता।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
11-01-1999