यह पंक्तिया उस इंसान की कल्पना हैं जो कभी अफगानिस्तान ,ईराक ,इजिप्ट सीरिया
जैसे देशो में घुमा था और आज वहां की खूबसूरती की जगह उसे सिर्फ बर्बाद शहर खण्डार
इमारते ,लुटती ,पिटती ,इंसानियत लाशो से पटे कब्रिस्तान ही नज़र आये तब उसके
मन से जो निकला वो कलम बद्ध यहाँ प्रस्तुत हैं ===================================================
'' मज़हब की इस दुनिया में , काश कहीं इंसान मिले। इंसानो का क़त्ल करते मुझको , बस कई हैवान मिले। ''दोजख करके इस जन्नत को किस जन्नत की शान मिले। जाने किस जन्नत की खातिर , होते सब कुर्बान मिले।
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'' गैर मज़हबी को क़त्ल करने के क्यों यहाँ फरमान मिले। हर थोड़ी दुरी पर मुझको , बस यहाँ कब्रिस्तान मिले ' ''अपनों की लाशें दफ़न करते ,कई लोग अंजान मिले। ज़हन में जिनके उठते कई , सवाल परेशान मिले।
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''काश किसी के दिल में मुझको , थोड़ा सा ईमान मिले। लोगो की इस भीड़ में ............क्यों सब बेईमान मिले ''उस रब के रहबर मैं उठती , कोई सच्ची आज़ान मिले। दिल में सिर्फ चाहत लिए खड़ा , हर शख्स निगेहबान मिले।
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'' खूबसूरत से शहर ये सारे क्यूँ , मुझको अब वीरान मिले। थी कभी यहाँ भी रंगत........जिसके मुझको निशान मिले। '' ''हैं चलते फिरते लोग यहाँ 'पर मुझको सब बेज़ान मिले। बम , बन्दुक , बारूद से हटकर , कोई प्यारा सा सामान मिले।
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''ऐसे कर्मो से जग में .................तुझको कहाँ आन मिले। नेकी की राह पे चल ..............जहाँ सच्ची पहचान मिले। ''रब की इस दुनिया में कहीं , सच्चे दिलो की खान मिले। इस धरती पर मुझको कहीं तो ......ऐसे मेहरबान मिले ।
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''हर मोड़ पे सबको एक दूसरे का साथ और सम्मान मिले। प्रेम अहिंसा और शांति के ,दिल में जिनके अरमान मिले। ''इस मुश्किल सफर में मुझको , कोई राह आसान मिले। रहें सुकून से इन्सान जहाँ , ..........कोई ऐसा माकान मिले।
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''सरहदो में न उलझा हुआ कहीं खुला आसमान मिले। इस जहाँ में मुझको कहीं .............ऐसा जहान मिले। ''सुन मेरे जज़्बातों से होते , कई लोग हैरान मिले। कौन जाने किसी दिन पढता कोई मेरा यह दीवान मिले।
*************राजेश कुमार "आतिश"**************