फिर क्यूँ भूल गए हम उनको ,जो हुए यहाँ कुर्बान है
''अपने हाथो से मिटने में लगे हम अपनी पहचान है
बढता हुआ है इंडिया ,और दम तोड़ रहा हिंदुस्तान है
"अपने संस्कारों से हम आज खुद हो रहें अन्जान है
दूसरी संस्कृति में खो जाना ,क्या नहीं ये खुद का अपमान है
"वीरो की जननी है ये , इसे देवो का वरदान है
ऋषियों के ताप का फल है ये ,विश्वगुरु का सम्मान है
"हमारे पूर्वजो के पुण्यों के फेले यहाँ निशान है
फिर भी हम कर रहें आज गेरों पर अभिमान है
"भ्रस्टाचार में लिप्त यहाँ ,कई नेता बेईमान है
नीतियों में इनकी पिस गया आम इंसान है
"लागु करते है हर वर्ष ये नया प्रावधान हैं
फिर भी आत्महत्या कर रहा रोज़ यहाँ किसान है
"अपनों को बेघर कर बना रहें ,गेरों के लिए महल आलीशान है
यहाँ भूख से लाचार है गरीब , और न रहने को मकान है
"बिस्मिल के दिल में थे कभी शायद ,आज के हालत हैं खटके
इसलिए उसने कहा था, याद कर लेना हम को भी भूले भटके
"गिला नहीं उनसे जो कर रहें अपनों को बदनाम है
भारत में बची शायद आज भी अंग्रेजों की संतान है
"हम क्या थे हम क्या बन रहें हैं
क्यूँ हम खुद को खुद से दूर कर रहें हैं
"थमाया है तीर गेरों ने मगर ,अपनों के हाथो में कमान है
शायद ये आज के नेताओं का नया बलिदान है
"बहार जा कर बसा रहें जो अपना जहान है (काला धन )
हक नहीं कहने का उनको ये मेरा हिंदुस्तान है ....
*************राजेश कुमार "आतिश"**************
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