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Thursday, 21 May 2020

पंडित ओंकारनाथ ठाकुर जिन्होंने अपने संगीत से अनिंद्र से बेचेन मुसोलिनी को सुला दिया था

फोटो में: पंडित ओंकारनाथ ठाकुर जी 

ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री, संगीतज्ञ एवं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार थे। उनका सम्बन्ध ग्वालियर घराने से था।


श्री ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म गुजरात के बड़ोदा राज्य में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके दादा महाशंकर जी और पिता गौरीशंकर जी नाना साहब पेशवा की सेना के वीर योद्धा थे। एक बार उनके पिता का सम्पर्क अलोनीबाबा के नाम से विख्यात एक योगी से हुआ। इन महात्मा से दीक्षा लेने के बाद से गौरीशंकर के परिवार की दिशा ही बदल गई। वे प्रणव-साधना अर्थात ओंकार के ध्यान में रहने लगे। तभी २४ जून १८९७ को उनकी चौथी सन्तान ने जन्म लिया। ओंकार-भक्त पिता ने पुत्र का नाम ओंकारनाथ रखा। जन्म के कुछ ही समय बाद यह परिवार बड़ौदा राज्य के जहाज ग्राम से नर्मदा तट पर भड़ौच नामक स्थान पर आकर बस गया।

बताते हैं की महात्मा गांधी भी उनके संगीत की ताकत का लोहा मानते थे। गांधी जी ने कभी कहा था कि ओंकारनाथ जी अपने एक गान से जितना कह डालते थे, उतना कहने के लिये उन्हें कई भाषण देने पड़ते थे। 
उनका गाया वंदेमातरम या 'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो' सुनने पर एक रूहानी अनुभूति होती है।

बात 1930 के दशक की शुरुआत की है.
1933 में भारतीय संगीतज्ञ ओंकारनाथ ठाकुर यूरोप की यात्रा पर थे। उस समय पुरे यूरोप में इटली के तानाशाह मुसोलिनी की दहशत थी ,लेकिन वही ताकतवर मुसोलिनी स्वयं नींद ना आने के कारन बहुत परेशांन रहता था बहुत इलाज कराया लेकिन कहीं कुछ फायदा नहीं हुआ। 

मुसोलिनी की कई प्रेमिकाओं में एक प्रेमिका बंगाली थी. जिसे संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान था. उसने जब मुसोलिनी से कहा कि उसकी अनिद्रा का इलाज संगीत में है तो उसने इस बात को हंसी में उड़ा दिया. बात आई गई हो गई.

जब ओंकारनाथ ठाकुर अपनी यूरो यात्रा के दौरान रोम पहुंचे तो मुसोलिनी की बंगाली प्रेमिका उनसे मिलने आई. वो उनकी परिचित थी। उसने उन्हें मुसोलिनी के आवास पर आमंत्रित किया.

ओंकारनाथ ठाकुर विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे। ओंकारनाथ ठाकुर रागों के महारथी थे ओंकार जी ने आमंत्रण स्वीकार किया. वो मुसोलिनी से मिलने पहुंचे। 
मुसोलिनी ने उनके सम्मान में रात के डिन्नर पर आमत्रित किया। 
मुसोलिनी ने हिंदू धर्म का मजाक बनाते हुए कहा: ओमकारनाथ ठाकुर जी मैंने सुना है कि आप के देवता भगवान श्री कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तब तमाम गाय उनके पास दौड़कर चली जाती थी। 
यह कैसे सच हो सकता है आपके हिंदू धर्म में कितना गप्प लिखा गया हैं ? 
ठाकुर ने विनम्र तौर पर मुसोलिनी से अनुरोध किया कि वो रात के डिनर में आज केवल शाकाहारी भोजन लें. मुसोलिनी ने वैसा ही किया. खाने के बाद उन्होंने अपने हिंडोलाम के साथ आलाप लेनी शुरू की. वो राग पूरिया का आलाप ले रहे थे. नोट्स पहले तो हल्के थे फिर वो तेज होते गए। एक अजीब सी कशिश थी राग में. हर कोई इससे बंधा हुआ था. 15 मिनट के भीतर ही मुसोलिनी सो गया। 
ठाकुर ने बाद में अपने संस्मरण में लिखा:
मैने देखा मुसोलिनी की आंखें बंद हो चुकी हैं और गहरी नींद के आगोश में जा चुके हैं. चेहरा गुलाबी सा लग रहा था और आखें एकदम बंद थीं. कुछ घंटों बाद जब आंखें खुलीं, तो उन्होंने खुशी से कहा-वाह क्या संगीत था और कितनी गहरी नींद आई। 

हालांकि उस रात ठाकुर जरूर नहीं सो पाए, उन्हें यही लग रहा था कि पता नहीं मुसोलिनी की रात कैसी बीती होगी. वो वाकई सो पाया होगा। 
अगले दिन उन्हें मुसोलिनी से दो खत मिले, एक में उन्हें धन्यवाद कहा गया था और दूसरा खत एक अपाइंटमेंट लेटर था, जिसमें उन्हें एक यूनिवर्सिटी में नए बनाए गए संगीत डिपार्टमेंट का डायरेक्टर बनाने की जानकारी दी गई थी. हालांकि ओंकार नाथ ने उसे मंजूर नहीं किया, क्योंकि उन्हें वापस देश लौटना था। 

बाद में ठाकुर उनके मेहमान बने. उन्हें एक से एक राग नहीं सुनाए बल्कि उनके असर का भी अनुभव कराया. एक बार जब वो मुसोलिनी को राग छायानत सुना रहे थे तो मुसोलिनी की आंखों से आंसू निकलने लगे. मुसोलिनी को कहना पड़ा, उन्हें अपने जीवन में इतना अच्छा कभी महसूस नहीं सुना, जितना इस पॉवरफुल भारतीय संगीत से हुआ। 

संगीत की जानी मानी वेबसाइट बिबिलियोलोर डॉट ऑर्ग में इसका वर्णन किया गया. बीकेवी शास्त्री ने इस पर लंबा लेख लिखा है. हालांकि मई 1933 में घटित ये घटना रिकार्ड नहीं की जा सकी। 

Sunday, 17 May 2020

''हिन्द में छाया हैं अँधियारा।




''हिन्द में छाया हैं अँधियारा।
करो मिल कर सब उजियारा।
आओ करें हम नव निर्माण।
आने वाले युग को बनायें पुराण।
''देखों क्या हैं आज यहाँ
छाया है बस काल धुंआ।
जागेगा जब हिन्द आज।
बजेगा फिर एक नया सा साज।
''बीत गया जो था एक सच।
सामने हैं एक काल चक्र।
उलझ के रह गएँ हैं हम।
बन्धनों के मोह जाल में।
कर डालो कुछ नया।
इस काल चक्र के काल में
''फिर बुझ जाएंगी चिंगारियां।
फुट उठेंगी फुरवाइयाँ।
और देखों तब हिन्द में बजेगी।
खुशियों की शहनाइयाँ।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
लिखा - 23-12-1998


Wednesday, 13 May 2020

हाले ऐ दिल हम उनसे इज़हार किये बैठे हैं।



''हाले ऐ दिल हम उनसे इज़हार किये बैठे हैं।
 जो फ़ासले हमसे हज़ार किये बैठे हैं।
''ना कर कोशिश बुझाने की इन चरागों को
तेरी यादों से जिन्हे हम जलाये बैठे हैं।

''हैं गम सीने में फिर भी मुस्कुरायें बेठे हैं।
 कैसे कहें की दिल किस से लागाये बेठे हैं।
''यकीन होता नहीं उनके लबो को देखकर
और निगाहों को वो पहरेदार बनाए बेठे हैं।

''कैसे बतायें सीने में क्यों आग जलाएँ बेठे हैं।
 हैं ज़ख्म अब भी ताज़े बस दर्द भुलायें बेठे हैं।
''कैसे बतायें किस को क्या क्या आजमायें बेठे हैं।
 हम उस राह के हैं मुसाफिर जो खुद राह भुलायें बेठे हैं।

''सारे इल्जाम हम खुद पे लगायें बेठे हैं।
 जनाज़ा अपनी मौत का खुद ही उठाये बेठे हैं।
''उसको फ़िक्र मेरी हो ना हो मगर ''
 उसकी फ़िक्र की खातिर खुद को मिटायें बेठे हैं।

''उनकी यादों से हम ज़िन्दगी सजाये बेठे हैं।
 बेवजह जो हमको सतायें बेठे हैं।
बनके धड़कन जो दिल में उतर गये हैं मेरी
 और अपने दिल से जो हमको भुलाये बेठे हैं। 

**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
लिखा - 16-11-2015 
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Monday, 11 May 2020

मूंछों पर ताव देते चंद्रशेखर आज़ाद जी के फोटो की कहानी कुछ यूँ थीं।



आपने जब भी महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी का एक फोटो देखा होगा जिसमें मूछों पर ताव दे रहे हैं आजाद के शौर्य और वीरता से लबरेज एकमात्र फोटो की  कहानी बड़ी दिलचस्प है। 

बात उन दिनों की है जब महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी को अंग्रेज ढूंढ रहे थे। 
और आजाद जी झांसी के चित्रकार ,मूर्तिकार, फोटोग्राफर मास्टर रूद्र नारायण जी के घर भेष बदलकर हरिशंकर नाम से ठहरे हुए थे।  
दरअसल झांसी में क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रीय भूमिका निभाने वाले मास्टर रूद्र नारायण जी के घर पर आज़ाद जी लबे समय तक गुप्तवास के दौरान रहे थे। वे यहां रूद्र नारायण जी के छोटे भाई बनकर रहे थे। रूद्र नारायण जी के पुत्र मुकेश नारायण सक्सेना बताते हैं। की रूद्र नारायण जी फोटोग्राफी के शौक़न थे और उन्होंने घर पर ही एक छोटा सा स्टूडियो भी बना रखा था। आज़ाद जी जब झांसी में गुप्तवास पर थे, उसी समय रूद्र नारायण जी ने उनकी एक फोटो खींचने का अनरोध किया था।
हुआ यूँ की
एक दिन आज़ाद व्ययाम  कर रहे थे तब मास्टर रूद्र नारायण बोलो पंडित जी मैं आपका फोटो ले लूं। आजाद बोले किंतु यह फोटो किसी के हाथ लग गया बड़ी मुश्किल होगी यह फोटो अंग्रेजों की मदद कर सकता है तब मास्टर रूद्र नारायण जी ने कहा मैं फोटो गोपनिय रखूंगा यह फोटो लेना इसलिए जरूरी है कि आजादी के बाद देश जाने तो सही कि जिस क्रांतिकारी को ' पुलिस नदियों जंगलों गुफाओं और कुओं तक में कांटे डालकर ढूंढती रही वह जाबांज़ दिखता कैसा था। 


महान क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद जी का यह वही फोटो हैं  
तब आजाद ने इस तर्क व प्रेम को देखते हुए अनुमति दे दी। रूद्र नारायण जी ने कैमरा निकाला।आज़ाद जी तब कमर तक धोती लपेटे थे और ऊपर बदन खुला था आजाद ने कहा मुझे मूछों पर ताव देने दीजिये तब फोटो लीजिएगा मास्टर रूद्र नारायण जी ने यही किया बाद में आजाद का एक फोटो अपने परिवार के साथ लिया कई दिन बाद जब आजाद जी  झांसी छोड़ कानपुर जाना पड़ा। 

तब उन्होंने अपने साथ क्रांतिकारी विश्वनाथ वैशम्पायन को बताया कि मास्टर रूद्र नारायण ने मेरे दो फोटो ले लिए है वो फोटो अंग्रेजों की मदद कर सकते हैं इसलिए जाओ और उन्हें नष्ट करवा दो विश्वनाथ वैशम्पायन रूद्र नारायण जी के  घर पहुंचे और आजाद का संदेश दिया तब रूद्र नारायण जी ने तर्क दिया कि एक फोटो भी नष्ट कर देंगे तो आने वाली पीढ़ियां आजाद को कैसे पहचानेंगे। 
विश्वनाथ सहमत हुए लेकिन आजाद का आदेश भी था।  टाल नहीं सकते थे दोनों ने तय किया कि फोटो फाड़ देंगे लेकिन नेगेटिव सुरक्षित रखेंगे इससे आजाद का आदेश भी पूरा होगा और बाद में फोटो बनवा लेंगे। 
उन्होंने यही किया क्रांतिकारी मास्टर रूद्र नारायण जी ने आजीवन यह तस्वीर धरोहर कि तरह संभाल कर रखी। आज भी यह तस्वीर इस परिवार के लोग एक अवमरणीय स्मृति के रूप में सहेज कर रखे हुए हैं।
इस तरह देश को महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी का यह एकमात्र फोटो मिला।
झांसी के चित्रकार,मूर्तिकारफोटोग्राफर क्रांतिकारी मास्टर रूद्र नारायण जी




Wednesday, 6 May 2020

जो राजनीती से नही जुड़ा ,क्या वो देशभक्त नहीं गद्दार हैं।


 ''घबराता नहीं हूँ में दुश्मन के हथियारों से।
 पर डर लगता हैं ' मुझे अपने घर में छिपे गद्दारों से।

''रोक सके ललकार मेरी 'कोई बनी ऐसी दिवार नहीं।
 पर खून खोल जाता हैं मेरा सुन उनके नपुंसक विचारों से।

''जो बाँट रहें अपनों को आरक्षण के औजारों से।
 संभल के रहना तुम भी ऐसे झूठे मक्कारों से।

''देश में दंगे होते हैं इनके ही फरमानों से।
 फिर भी राज कर रहें हैं यह पुश्तेनी घरानों से।

''दोहरा चरित्र दिखता हैं इनका निति और व्यवहारों से।
 संभल के रहना तुम भी ऐसे खुनी सियारों से।

''देश बेच रहें हैं जो अपने मौलिक (निजी) अधिकारों से।
 जी करता हैं गर्दन  काट दूँ ''उनकी ''नंगी तलवारों से।

''मेरे सब्र का बाँध कब का टूट गया। 
 मेरे अंतर्मन का ज्वालामुखी कब का फुट गया। 

''भारत माँ की लाज बेच नैतिकता का  पढ़ाते हो। 
 इतनी निर्लज्जता अपने मन में कहाँ से लाते हो। 

''राष्ट्रहित और देशभक्ति का क्या सिर्फ तुमको अधिकार हैं। 
 जो राजनीती से नही  जुड़ा , क्या वो देशभक्त नहीं गद्दार हैं। 




Tuesday, 5 May 2020

बिस्मल का विचार

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी के जीवन को पढने के बाद बहुत दुःख होता हैं।  यह देख
    कर की वर्तमान भारत में महज़ चंद राष्ट्रभक्तों के अलावा उन्हें कोई याद ही नहीं करता। 

    चार पँक्तियों में उनके विचार अपनी नज़र से लिख रहा हूँ। 

दिल में घर


 ''आजकल आये दिन लगातार यह खबर अखबार में पढने को मिल रही हैं।
कभी किसी का तो कभी किसी क्रांतिकारी का घर बिना  रखरखाव के  बदहाल हो गया '
यह कहीं किसी का तोड़ दिया गया। 




Monday, 4 May 2020

बलिदान

''उन अमर क्रांतिकारियों की शहादत अक्सर हमसे यह सवाल करती हैं।
जिसका जवाब आज हम सभी को खुद से पूछना हैं।



Sunday, 3 May 2020

आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड


आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बाण शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो 
आरंभ है प्रचंड..

मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वोही तो एक सर्वशक्तिमान है
विश्व की पुकार है
ये भागवत का सार है
कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरोवों की भीड़ हो या
पांडवों का नीड़ हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यूँ डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो

आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बाण शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड..

वो दया भाव या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो
वो दया भाव या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या की पुरे भाल पे जला रहे विजय का लाल
लाल यह गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केशरी हो या मृदंग केशरी हो
या कि केशरी हो ताल तुम ये सोच लो
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती मासों में आज, फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो

आरंभ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बाण शान या कि जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो

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        "मेरी पसंदीदा कवितातायें"

रोशन कर दें हर जज़्बात वो किताब बनना चाहता हूँ।


''किसी की आँखों का सपना बनना चाहता हूँ। 
 जो चाहें सिर्फ मुझे उसका अपना बनना चाहता हूँ। 

''किसी दिल से मांगी मुराद बनना चाहता हूँ। 
 किसी की निगाहों का ख्वाब बनना चाहता हूँ। 

''गिरती फूलों पर वह पहली ओस बनना चाहता हूँ। 
 हर दिल में जगा दे  वो जोश बनना चाहता हूँ। 

''उस भटकती निगाहों की मंज़िल बनना चाहता हूँ। 
 एक डूबती कश्ती का साहिल बनना चाहता हूँ। 

''किसी दिल से उठती हुई आवाज़ बनना चाहता हूँ। 
 किसी गुमनाम सितार का साज़ बनना चाहता हूँ। 

''किसी दिल में दबे दर्द का एहसास बनना चाहता हूँ। 
 हर दिल में छुपी कुछ पाने की आस बनना चाहता हूँ। 

''बारिश में उस पहले चुम्बन की मिठास बनना चाहता हूँ। 
 तेरे हर गम को पि जाए वह प्यास बनना चाहता हूँ। 

''किसी धड़कते दिल की साँस बनना चाहता हूँ। 
 हमेशा जगा रहें दिल में वह विश्वास बनना चाहता हूँ। 

''किसी के दिल में छुपा हुआ राज बनना चाहता हूँ। 
  तेरे हर सवाल का जवाब  बनना चाहता हूँ। 

''किसी की लेखनी की कही बात बनना चाहता हूँ। 
 रोशन कर दें हर जज़्बात वो किताब बनना चाहता हूँ। 

 **********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********

Saturday, 2 May 2020

भगत सिंह का विचार

भगत सिंह के विचारो को इन चार पंक्तियों में व्यक्त करने की कोशिश कर रहा हूँ।
यह जानते हुए भी की उनके विचार चंद पँक्तियों में तो क्या पूरी किताब लिखने
पर भी व्यक्त नहीं हो पायेंगे।




'हे जननी जन्मभूमि प्रणाम हैं तुम्हे।


''हे जननी जन्मभूमि प्रणाम हैं तुम्हे। 
यह सम्पूर्ण जीवन ही बलिदान हैं तुम्हे। 
''चरित्र संस्कार और त्याग से परिपूर्ण हों। 
ऐसे व्यक्तित्व का करना निर्माण हैं हमें। 

''युद्ध जीत नहीं सकता हैं तू गर झूठ की कमान हों। 
जीतता हैं जो जो प्रहार करता हैं जब सत्य का बाण हो। 
 ''फिर राणा का जन्म हो 'नारी का झाँसी सा सम्मान हों। 
और शोर्य चन्द्रगुप्त का विवेकानंद सा ज्ञान हो। 

''उन टूटे शिलालेखो का फिर से आलेख हों। 
उन महावीर बलिदानियों का फिर से अभिषेक हों। 
''विश्व की धरा पर राष्ट्र का यश गान हो। 
अपनी संस्कृति पर हमको फिर से अभिमान हों। 

''लेंगे प्रभु अवतार यहीं 'मानव जाती का कल्याण हों। 
 हर जन्म मेरा इस मात्रभूमि पर बलिदान हों। 
''जीवन होगा सार्थक सिर्फ समर्पण से 
हर व्यक्ति में जागृत कुछ ऐसा स्वाभिमान हों। 

**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********

अपने भाग्य का तू खुद नरेश हैं।


''हिंन्दु का हिन्दू से क्यों हो रहा कलेश हैं। 
गेर फेला रहें हैं ,तेरे अंतर्मन में ये द्वेष हैं। 
''गर संभला नहीं आज तो 'यह तू सोच ले। 
समर के दिन रहेंगा नहीं फिर कुछ भी शेष हैं। 

''हर व्यक्ति खुद को कह रहा विशेष हैं। 
देशद्रोही गतिविधियों का हो रहा प्रवेश हैं। 
''गर चिर निंद्रा में लीन युहीं तू रहेगा। 
भविष्य में बचेगा नहीं यहाँ फिर तेरे अवशेष हैं। 

''अपने भाग्य का तू खुद नरेश हैं। 
अपने संकल्पों का आज कर तू अभिषेक हैं। 
''शास्त्र और शाश्त्र से 'मजबूत कर इस धरा को। 
दुश्मनों के लिए यहीं तेरा सन्देश हैं। 


**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********