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Wednesday, 6 May 2020

जो राजनीती से नही जुड़ा ,क्या वो देशभक्त नहीं गद्दार हैं।


 ''घबराता नहीं हूँ में दुश्मन के हथियारों से।
 पर डर लगता हैं ' मुझे अपने घर में छिपे गद्दारों से।

''रोक सके ललकार मेरी 'कोई बनी ऐसी दिवार नहीं।
 पर खून खोल जाता हैं मेरा सुन उनके नपुंसक विचारों से।

''जो बाँट रहें अपनों को आरक्षण के औजारों से।
 संभल के रहना तुम भी ऐसे झूठे मक्कारों से।

''देश में दंगे होते हैं इनके ही फरमानों से।
 फिर भी राज कर रहें हैं यह पुश्तेनी घरानों से।

''दोहरा चरित्र दिखता हैं इनका निति और व्यवहारों से।
 संभल के रहना तुम भी ऐसे खुनी सियारों से।

''देश बेच रहें हैं जो अपने मौलिक (निजी) अधिकारों से।
 जी करता हैं गर्दन  काट दूँ ''उनकी ''नंगी तलवारों से।

''मेरे सब्र का बाँध कब का टूट गया। 
 मेरे अंतर्मन का ज्वालामुखी कब का फुट गया। 

''भारत माँ की लाज बेच नैतिकता का  पढ़ाते हो। 
 इतनी निर्लज्जता अपने मन में कहाँ से लाते हो। 

''राष्ट्रहित और देशभक्ति का क्या सिर्फ तुमको अधिकार हैं। 
 जो राजनीती से नही  जुड़ा , क्या वो देशभक्त नहीं गद्दार हैं। 




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