गेर फेला रहें हैं ,तेरे अंतर्मन में ये
द्वेष हैं।
''गर संभला नहीं आज तो 'यह तू सोच ले।
समर के दिन रहेंगा नहीं फिर कुछ भी शेष हैं।
''हर व्यक्ति खुद को
कह रहा विशेष हैं।
देशद्रोही गतिविधियों का हो रहा प्रवेश हैं।
''गर चिर निंद्रा में
लीन युहीं तू रहेगा।
भविष्य में बचेगा नहीं यहाँ फिर तेरे अवशेष हैं।
''अपने भाग्य का तू
खुद नरेश हैं।
अपने संकल्पों का आज कर तू अभिषेक हैं।
''शास्त्र और शाश्त्र
से 'मजबूत कर इस धरा को।
दुश्मनों के लिए यहीं तेरा सन्देश हैं।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
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