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Wednesday, 13 May 2020

हाले ऐ दिल हम उनसे इज़हार किये बैठे हैं।



''हाले ऐ दिल हम उनसे इज़हार किये बैठे हैं।
 जो फ़ासले हमसे हज़ार किये बैठे हैं।
''ना कर कोशिश बुझाने की इन चरागों को
तेरी यादों से जिन्हे हम जलाये बैठे हैं।

''हैं गम सीने में फिर भी मुस्कुरायें बेठे हैं।
 कैसे कहें की दिल किस से लागाये बेठे हैं।
''यकीन होता नहीं उनके लबो को देखकर
और निगाहों को वो पहरेदार बनाए बेठे हैं।

''कैसे बतायें सीने में क्यों आग जलाएँ बेठे हैं।
 हैं ज़ख्म अब भी ताज़े बस दर्द भुलायें बेठे हैं।
''कैसे बतायें किस को क्या क्या आजमायें बेठे हैं।
 हम उस राह के हैं मुसाफिर जो खुद राह भुलायें बेठे हैं।

''सारे इल्जाम हम खुद पे लगायें बेठे हैं।
 जनाज़ा अपनी मौत का खुद ही उठाये बेठे हैं।
''उसको फ़िक्र मेरी हो ना हो मगर ''
 उसकी फ़िक्र की खातिर खुद को मिटायें बेठे हैं।

''उनकी यादों से हम ज़िन्दगी सजाये बेठे हैं।
 बेवजह जो हमको सतायें बेठे हैं।
बनके धड़कन जो दिल में उतर गये हैं मेरी
 और अपने दिल से जो हमको भुलाये बेठे हैं। 

**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
लिखा - 16-11-2015 
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