''हिन्द
में छाया हैं अँधियारा।
करो मिल कर सब उजियारा।
आओ करें हम नव निर्माण।
आने वाले युग को बनायें पुराण।
''देखों
क्या हैं आज यहाँ
छाया है बस काल धुंआ।
जागेगा जब हिन्द आज।
बजेगा फिर एक नया सा साज।
''बीत
गया जो था एक सच।
सामने हैं एक काल चक्र।
उलझ के रह गएँ हैं हम।
बन्धनों के मोह जाल में।
कर डालो कुछ नया।
इस काल चक्र के काल में
''फिर
बुझ जाएंगी चिंगारियां।
फुट उठेंगी फुरवाइयाँ।
और देखों तब हिन्द में बजेगी।
खुशियों की शहनाइयाँ।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
लिखा - 23-12-1998
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