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यह कविता देश में फालतू की ऐप से बढती अश्लीलता और फूहड़ता के खिलाफ लिखी हैं। |
''ना शहर हैं रोशन ना गाँव आबाद हैं।
मुल्क मेरा पल पल हो रहा बर्बाद हैं
''संस्कृति ,सभ्यता लगे पिछड़ी
बात हैं।
नग्नता और फूहड़ता में आज दिन रात हैं।
''दौलत और शोहरत कमाना
अब ज़रूरी हैं।
इसलिए बेहयाई की हर गली से हो रही शुरुआत हैं।
''जब चरित्र पर भारी
पड़ती 'भौतिकता की बिसात हैं।
तब हर सच पर करता दिखें भ्रस्टाचार मात हैं।
''जब दौलत ही बन जायें
लोगो का मान हैं।
तब हर चौक पर बिकता दिखें रोज़ ईमान हैं।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
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