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कविता में उस मार्मिक दर्द को व्यंग रूप में चंद पंक्तियों में व्यक्त किया हैं |
एक बच्चा जो सड़क किनारे तिरंगा झंडा बेच रहा था
और आने जाने वाले हर लोगो को अपनी और खेंच रहा था
5 रूपए में झंडा लेने की आवाज़ लगा रहा था
और आती जाती गाड़ियों की तरफ दौड़ के भी जा रहा था
एक महाशय ने झंडा लिया पर 10र० के तीन देने का आग्रह किया
बच्चा बोला == बाबु साहब आप गैरत वाले नज़र आते हो
क्यूँ देश के मान का दाम
कम लगते हो
बाबु साहब इस तिरंगे पर देश का मान सम्मान टिका हैं
और कुछ ही दिन पहले
यही झंडा नेताजी की सभा में 10 रु में एक बिका हैं
बाबु साहब बोले = बेटा इस महंगाई ने हर तरफ से मारा है
इसलिए झंडा खरीदने के लिए भी सोचता यह आम आदमी बेचारा हैं
बेटा नेताजी सो नहीं हज़ार में भी झंडा खरीद सकते हैं
क्यों की वो हर पल
हमारे टेक्स के पैसे चरते हैं
और हम अपना पसीना बहा के ज़िन्दगी गुज़र बसर करते हैं
नहीं मिलता यहाँ आम आदमी को डंडे का भी सहारा हैं
इसलिए झंडा खरीदने के लिए सोचता यह आम आदमी बेचारा हैं
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
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