‘’ना जाने क्यूँ वो
गुजरा ज़माना याद आता हैं।
भरी महफ़िल में भी
खुद को यह दिल तन्हा पाता हैं।
‘’गुज़र रही है
ज़िन्दगी ‘ये मेरी कुछ इस तरहा
की अब गम नहीं ख़ुशी
का डर सताता हैं।
‘’के पूछता हूँ ये
अक्सर में खुद से
क्या बन गया हूँ और
दिल क्या बनना चाहता हैं।
‘’हटती नहीं नज़र
‘तेरी तस्वीर से मेरी
हर नज़र में मुझे बस
तू ही नज़र आता हैं।
‘’ज़िन्दगी में छा गई
हैं।ख़ामोशी इस कदर
की हर आहट पर अब ज़ी
घबराता हैं।
................‘’ना जाने क्यूँ वो
गुजरा ज़माना याद आता हैं।
**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********
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