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Friday, 24 July 2020

इस मुकद्दर से ना जाने क्यों ‘अपनी नहीं यारी हैं।



‘’इस मुकद्दर से ना जाने क्यों ‘अपनी नहीं यारी हैं।
किसी के हिस्से में शोहरतें ' किसी के हिस्से में खुमारी हैं।
‘’दिल में जगाये हैं।‘चिराग हमने भी हसरतों के जहाँ में 
दर पे तेरे शायद ‘मुराद पूरी होने की अभी नहीं मेरी बारी हैं।

‘’के इस जहाँ में फ़क्त एक में ही बेकार हूँ।
या किसी और की किस्मत भी लाचारी हैं।
‘’गुनाह हो जाऐगा शायद उस रब के हाथों
गर संवर जायेगी तकदीर जो थोड़ी सी हमारी हैं।

‘’’के सितम तकदीर के अब सहे नहीं जाते
लकीरों में उलझी हुई ये ज़िन्दगी लाचारी हैं।
‘’जिसने खाए हो सितम खुद अपने ही मुकद्दर से
उसके मुकद्दर की भी शायद गम से यारी हैं।

‘’याद नहीं वो रात जो मेने हँस के गुजारी हैं।
कटती नहीं ज़िन्दगी हर पल हमपे भारी हैं।
‘’बड़ते हैं। कदम भी डर डर आगे
लगता हैं। राहों में बिछी हर कदम पे कटारी हैं।

‘’तकदीर भी हम पे कुछ ज़यादा ही वारी हैं।
करती गुन्हा खुद हैं। हिस्से में सज़ा हमारी हैं।
‘’भूल गई हैं।तकदीर खुद शायद मुस्कुराना
इसलिए देना उसका हर पल हमपे सितम ज़ारी हैं।


‘’कहते हैं। लोग मुकद्दर रब के हाथो में हैं।
क्यूँ नहीं सुनता वो जो यह कहता फरियादी हैं।
बदलेगी किसी दिन तक़दीर भी हमारी
बस यही सोच के ये ज़िन्दगी गुजारी हैं।


**********राजेश कुमार ’’आतिश’’********** 

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