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Tuesday, 7 July 2020

उन टूटी हुई दीवारों से।

 यह कविता समर्पित हैं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक
जो हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहें हैं उन सभी हिन्दुओं के
दर्द को बयाँ करती हुई है यह कविता

''उन टूटी हुई दीवारों से। 
मँदिर के खंडहर हुये गलियारों से। 
''सिर्फ चींख सुनाई देती है। 
हर दर्रे और दरारों से। 

''उन खून सनी कटारो से। 
गर्दन कटती उन तलवारों से। 
''नहीं कोई बचाने आया। 
उन दहशतगर्दी नारों से। 

''कब तक यूँही दर्द सहोगे। 
बैठें यूँ लाचारों से। 
''उठा भाला महाराणा सा। 
और लड़ इन अत्याचारों से। 

''ताक में हैं बैठा दुश्मन। 
लड़ने को हथियारों से। 
''कर दे फ़ना इन दहशतगर्दों को 
की नज़र ना आये नज़रो से। 

''हिन्दू हित की गुहार लगते। 
थक गए सब सरकारों से। 
''हिन्दू को ही बचाना हैं हिन्दू को। 
बेदखल हो जाओगे वरना अपने ही घरबारो से। 

 **********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********

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