Saturday, 11 April 2020
यह कैसी आज़ादी हैं
Tuesday, 7 April 2020
क्या हाल हैं
Sunday, 5 April 2020
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी (पूरी कविता )
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्टर कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में
ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झांसी में
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छायी झांसी में
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी
किंतु कालगति चुपके चुपके काली घटा घेर लायी
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायी
रानी विधवा हुई, हाय विधि को भी नहीं दया आयी
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक समानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हर्षाया
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बिरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट फिरंगी की माया
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों बात
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात
उदैपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
रानी रोयीं रनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार
नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान
बहिन छबीली ने रण चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी अंतरतम से आई थी
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
रानी बढ़ी कालपी आयी, कर सौ मील निरंतर पार
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खायी रानी से हार
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
विजय मिली पर अंग्रेज़ों की, फिर सेना घिर आई थी
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय घिरी अब रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
......कावित्री ...सुभद्रा कुमारी चौहान जी .
"मेरी पसंदीदा कवितातायें"
Saturday, 4 April 2020
सरफरोशी की तमन्ना कविता की रचना किस प्रकार हुई थी
Friday, 3 April 2020
इंकलाब जिंदाबाद '' सिर्फ नारा नहीं है ''
Wednesday, 1 April 2020
"इतने सालों के प्यार में ।
"इतने सालों के प्यार में ।
खट्टी मिट्ठी तकरार में ।
"कभी तुम रूठे कभी में रूठी ।
इस प्यारे घर संसार में ।
"जीवन भर यूँ ही साथ रहे।
प्यार भरी इन बातों से
"दो फूल खिले है आँगन में।
तेरे मेरे जज़्बातों से।
"में थोड़ी चंचल 'अल्हड़ सी।
जिसको तुमने संभाला है
"मेरा कुछ खुद से पहले।
तुमको समर्पण हर निवाला है।
"मेरी हर रातों का तू ही तो उजाला है।
बिन कहे सब सुन लेता,तेरा प्यार भी
निराला है।
*************राजेश कुमार
"आतिश"**************
Tuesday, 31 March 2020
है कोई
'' दर्द ऐ दिल को छुपाता हैं
कोई ।
किसी की याद में,
ज़िन्दगी
बिताता हैं कोई ।
''कहता हैं पागलपन जिसे ज़माना
''हाल ऐ दिल रो के दिखता हैं
कोई ।
दर्द के अहसास से ही बिखर जाता हैं कोई ।
''जिस ज़माने को समझ नहीं सका
ज़माना
उसे हाल ऐ दिल क्या बताता हैं कोई ।
''कभी खुलकर मिलने से घबराता
हैं कोई।
कभी खुद से ही शर्माता है कोई ।
''डरता हैं कोई कहने से दिल
की बात
कहीं खुद को खुद से ही छुपाता हैं कोई ।
''कहीं मोहब्बत के नाम से ही
इतराता हैं कोई।
कभी निगाहों ही निगाहों ,में बस जाता हैं कोई ।
''चाहता है ,हर पल जिसे दिल अपना
उन पलो को खुशगवार बनता है
कोई ।
''राहो में पलके, किसी की बिछाता है कोई।
चुपके से दिल में ,समाता हैं कोई ।
''हर आहाट पर जिनकी धडकता हो
दिल
उस ज़िन्दगी को मुकम्मल बनता हैं कोई ।
''मोहब्बत का क़र्ज़ कहाँ उतार
पाता हैं कोई ।
कहीं अपनों से ही घबराता है कोई ।
''ढूंढती रहती हैं नज़रे ,जिसको यहाँ
वो दिल में ही कहीं मिल जाता हैं कोई
।
*************राजेश कुमार "आतिश’’*************
Monday, 16 March 2020
बालकनी
वो चाहे हमारे घर की बालकनी हो या होस्टल..की
उसी एहसास को बयां करती यह पंक्तियाँ ,उम्मीद है आपको पसंद आएँगी
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''में जनता हूँ वो जगह जहाँ तू रहती थी
जब मेरे घर की
बालकनी तेरी बालकनी से कुछ कहती थी
''किसी खआब की तरहा जब तुम उस घर में रहने आई थी
तेरी हंसी झलक मेने
उस बालकनी में पाई थी
''वो बालो को झटक कर जब तुम सुखाती थी
गिरते बालो को अपने
चेहरे से हटती थी
''एक हवा के झोंखे से तेरे बाल बिखर जाते थे
तेरी खिलती हंसी को
जुल्फों के झरोखों से देख पाते थे
''किसी सुहानी शाम की तरहा जब तुम बालकनी में आती थी
मेरी बालकनी भी मुझे
तेरे होने का अहसास कराती थी
''में झट उठ खड़ा हो तैयार जाता था
तेरा दीदार करने को
मेरा दिल मचल जाता था
''दिन भर तेरी याद में यु ही काट लेते थे
निकलेगा चाँद मेरा,बालकनी में' इस बात से दिल थाम
लेते थे
''उसको अपना बनाने के लिए ,मुझको दूर जाना था
हाथ मांगने के लिए
उसका ,कुछ कर के दिखाना था
''कुछ सालो बाद में लौट के फिर आया था
अपनी उस बालकनी का
दरवाज़ा मेने आज खुलवाया था
''गुमसुम चुपचाप सी मेरी बालकनी आज शांत थी
तेरी बालकनी भी लगता
हैं जैसे मुझसे अनजान थी
''अपनी ही बालकनी में जैसे में आज मेहमान था
वो दिखी नहीं कहीं
में ये सोच के हैरान था
''एक अजीब सी ख़ामोशी का एहसास मन में आया था
कुछ हो गया है शायद
जो 'वक़्त के पन्नो ने मुझसे छुपाया था
''तेरी बालकनी मुझे तेरा हाल ए दिल सुना गई
जीना हैं अब अकेले
ये मुझको बता गई
''एक डर था जो मन में वो सच हो गया
अपनी ही बालकनी में
आज तन्हा हो गया
''लगता हैं जैसे 'समय के बदलो में हैं चाँद मेरा खो गया
देखते थे जिसे रोज़ बालकनी
में वो अब किसी और का हो गया
''वो अपनी बालकनी से खड़े होकर तुझे देखता था
तू नहीं होती थी तो
तेरी बालकनी से कुछ कहता था
''अब उस बालकनी के दरवाज़े अक्सर बंद रहतें थे
जहाँ कभी धडकते दिल
आपस में कुछ कहते थे
''में जानता हूँ वो जगह जहाँ तू अब रहती हैं
पर मेरे घर की
बालकनी अब कुछ नहीं कहती हैं
*************राजेश कुमार
"आतिश"**************