‘’देश बेचने पर टूल
जाए जब खुद खाड़ी हैं।
तब बापू का वो चरखा यह पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’घायल
हो लाहुलुहान पड़ी सालों से कश्मीर की वादी हैं।
उसका ज़र्रा ज़र्रा चीख के कहता यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’जहाँ बच्चे भूख से मरते हो,और अनाज की होती बर्बादी हैं।
तब हर खेत खलिहान यह पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’जहाँ डोलियाँ उठने से पहले बोली लगे जाती हैं।
और बेटियाँ कोख में मरती हो,कहीं बहु जलाई जाती हैं।
‘’जिस समाज में बिना दहेज़ के
होती नहीं शादी हैं।
तब हर रिश्ता रिश्तों से पूछें यह कैसी आजादी हैं।
‘’सहते सहमे लोगो की उम्मीद
बच्ची अब आधी हैं।
तब हर दाता अपने मत से पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’जब षड्यंत्र खोलने वाले
खुद करने लगे साज़िश हैं।
तब आतिश सबसे यह पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’जो समाज भुला देता हैं अपने शहीदों की कुर्बानी हैं।
और सुनाई नहीं देती हैं जिनको क्रांतिकारियों की वाणी हैं।
‘’अपना लहू बहाक्र जिन्होंने हम को दी आज़ादी हैं।
उनका कतरा कतरा चीख के कहता यह कैसी आज़ादी हैं।
*************राजेश कुमार "आतिश"*************
No comments:
Post a Comment