‘’पुछ ज़रा खुद से तू 'क्यूँ देश का यह हाल हैं।
ज़रा ज़रा खुद से कह रहा 'वो क्यों बदहाल हैं।
शोक हैं संताप हैं 'कोई भूख से बेहाल हैं।
पूछ मत तू खुद से कर 'क्या तेरा सवाल हैं।
‘’मच रहा गली गली 'अंजाना सा बवाल हैं।
फिर भी पूछ रहा हर कोई 'कैसा आपका हाल हैं।
किस के पीछे भग रहें 'ये कैसा भेडचाल हैं।
नित्य नए घाट रहें यहाँ 'कृत्य और कमाल हैं।
‘’मिट रही हैं ज़िन्दगी सस्ती और मौत मालामाल हैं।
खिलते थे फूल जहाँ 'आज वो चमन कंगाल हैं।
ताक में तैयार बेठा 'हर कदम पर काल हैं।
जश्न हो रहा मौत का और ज़िन्दगी पर मलाल हैं।
‘’चलते कुछ ऐसी अनोखी इनकी चाल हैं।
जिस्म पर खादी सजी ‘निचे रेशम की टाल हैं।
वादें करते हैं यह कर दे देश को खुशहाल हैं।
मल रखा चेहरे पर इन्होने देशभक्ति का गुलाल हैं।
‘’आदमी बन गया आज कैसे
हमाल हैं।
बिक रही हैं सिसकियाँ और नीतियाँ कमाल हैं।
बंधनों में जकड़ा हुआ यह कैसा मोह जाल हैं।
कैसे जी ले सुकून यहाँ ‘ज़िन्दगी में खलाल हैं।
‘’ओढ़ राखी हैं जो तूने वो विकृत खाल हैं।
चीर के निकाल दे 'जो सड गई छाल हैं।
अध् कटे लटक रही 'यहाँ मस्तको की डाल हैं।
और फुक दे प्राण उनमे 'जो पड़े बेहाल हैं।
‘’जल पड़े दबी पड़ी सीने की ज्वाल हैं।
गम रहें न फिर कोई कर दे खुद को हलाल हैं।
चीर दे कहीं भी तू कैसा भी बिछा जाल हैं।
आगे बढ़ कर शपथ तू खुद अपनी ढाल हैं।
'’समेट ले बाँहों में नहीं दुनिया इतनी विशाल हैं।
रुख मोड़ दे तू उसका जो वक्त की चाल हैं।
खून से लिख दे उसपे ‘जो तेरा भाल हैं।
कर दे तू आज खुद को इस चेतना में बहाल हैं।
‘’हर रात बीत जाती हैं ‘फिर दिन का उजाल हैं।
करता हैं जो खुद का ऐसा दूसरों का ख़याल हैं।
*************राजेश कुमार "आतिश"**************
Wah bhaiya ..bahut achi kavita likhi h apne ..👏👏
ReplyDeletethanku pls follow blog ...
Delete