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Tuesday, 28 April 2020

नमन करना सदेव 'राष्ट्र पर मिटने वालो को।


हम अपने घरो में महफूज़ हैं। क्यूंकि हम जानते हैं की सरहदों पर हमारे सेनिक खड़े हैं।
दुश्मनों को नेस्तोनाबुत करने के लिए ताकि हम सुकून से जी सके,यह भारत भूमि
सुरक्षित रहें। और विकास के मार्ग पर निरंतर बढ़ती रहें।

''सरहदे हैं रोशन ''जिन घर के चिरागों से।
झड जाते हैं फूल ''हर रोज़ कुछ बागों से।

''हम रहतें हैं सुकून से जिस आशियाने में।
बहाया हैं लहूँ किसी ने उसे बचाने में।

''महक रहीं हैं खुशबु ''आज इन हवाओं में।
मिला हैं लहूँ किसी का इन फिजाओं में।

''सरकार का दोगलापन कायम हैं सालो से।
करती हैं गद्दारी अपने ही घर के लालो से।

''गर्व हैं हमे अपनी सेनाओं पे।
सलामत हैं इनके दम से शीश माताओं कें।

''याद रखो तुम ,उन सभी मात्रभूमि के लालो को।
 नमन करना सदेव 'राष्ट्र पर मिटने वालो को। 

***********राजेश कुमार ’’आतिश’’*********** 

Sunday, 26 April 2020

आज सब मौन हैं


''आज मन छुब्ध हैं। 
अंतर्मन भी क्रुद्ध हैं। 
''संन्यास के दमन पर 
भू से गगन पर 
''विश्वपटल गौण हैं 
आज सब मौन हैं। 

''संत के संहार पर 
इनके दुर्व्यवहार पर 
''ना ही कहीं शोर हैं। 
ना कोई भावविभोर है। 
''भूल गए सब की यह कौन हैं। 
आज सब मौन हैं। 

''भेडियों का झुण्ड खड़ा हैं। 
रक्त विछिप्त शव पडा हैं। 
''ना शोक है ना भाव हैं। 
यह बहुत गहरा घाव हैं। 
शस्त्र शिक्षा दे जो 'कहाँ ऐसे द्रोंण हैं। 
आज सब मौन हैं। 

''ना पीड़ा है ना मर्म हैं 
यह कैसा धर्म है।
''पूछता हैं भारत 'की दोषी कौन हैं। 
आज सब मौन हैं 

''अब ना कोई लागलपेट हो। 
ना बातचीत के छंद हो। 
''बस एक ही  विकल्प है। 
दोषियों को प्राण दंड हो। 

*************राजेश कुमार "आतिश"*************


Tuesday, 21 April 2020

हुँकार

   अब भी जो साथ ना दे वो ना वतन का हैं ना हमारा हैं। 

''भारत के युवाओं ने भरली अब हुंकार हैं। 

 ये गरजना नहीं यह ' युद्ध की ललकार हैं। 


''इनके कपटी दिल नहीं जो ,जो टुकड़ों में बिक जाते हैं। 

 ये वो निश्छल फूल हैं 'जो काँटों में भी खिल जाते हैं। 


''ये वो किलकारी नहीं ' जो सीने में छुप जाती हैं। 

 ये ऐसी दहाड़ हैं जो दुश्मनों ' के दिल हिलाती हैं। 


''रक्त वंचित भालो से दुश्मन को मार गिराना हैं। 

 उन सुख चुकी तलवारों को 'आज फिर से लहू चखाना  हैं। 


''सरहद के उस पार से जब दुश्मन कदम बढाता हैं।   

  माँ भारती का सीना ' दर्द से करहाता हैं। 


''उन व्यर्थ हंसी ठीठोलियों का राग पुराना हो जाने दो। 

 इन धीमी रक्त नलिकाओं में' आज उबाल तो आने दो। 


''ये बात नहीं बताने की ' कि देश को हमे बचाना हैं। 

 ये वक़्त हैं निर्णय लेने का हमको ही कदम उठाना हैं।


''इन निश्चल मन के भावो का भावार्थ बड़ा ही गहरा हैं। 

 इस जन आक्रोश के आगे कौन कहाँ कब ठहरा हैं। 


''हर गली हर नगर में गूंज रहा'एक ही नारा हैं। 
 अब भी जो साथ ना दे वो ना वतन का हैं ना हमारा हैं। 
   *************राजेश कुमार "आतिश"**************

Monday, 20 April 2020

ऐ ज़िन्दगी मुझे तुझसे प्यार हैं

ज़िन्दगी की हकीकत को बयां करती ''करुणरस'' की कविता 

''ऐ ज़िन्दगी मुझे तुझसे प्यार हैं। 
 ये माना की हूँ परेशान '
 थोडा खुद पे थोड़ा ' लोगो पे हूँ हैरान। 
''घर में बीमार माँ की नम आँखों में दुलार हैं। 
 ऐ ज़िन्दगी 'तू जैसे भी है मुझे तुझसे प्यार हैं। 

''ये माना की राशन की दूकान में लगती कतार हैं। 
 एक नोकरी की लाइन में हज़ार हैं। 
''भले ही चारो तरफ से महंगाई की मार हैं। 
 उलझी हुई सी ज़िन्दगी में हर पल तकरार हैं। 
''फिर भी ऐ ज़िन्दगी मुझे तुझसे प्यार हैं। 

''ये माना की सर पर उमीदों का पहाड़ हैं। 
 हर कदम पर मुश्किलों का झाड हैं। 
''नेता ऐसे जो खाके हमारा ही पैसा लेते नहीं डकार हैं 
 और जो सुनते नहीं हमारी 'उसे कहते सरकार हैं 

''की अब तो सपनो में भी सपने आते उधार हैं। 
 फिर भी हर पल उम्मीद बरकरार हैं। 
''ऐ ज़िन्दगी 'तू जैसे भी है मुझे तुझसे प्यार हैं। 


*************राजेश कुमार "आतिश"**************





Sunday, 19 April 2020

भारत महान की



''बंधी थी जिनसे उम्मीद भारत महान की। 
धज्जियां उड़ा दी उन्होंने ही संविधान की। 
''भूल गयें ,जो मर्यादा रामायण की। 
दावे करते हैं,वह खुद के होने चरित्रवान की। 

''करते हैं कमाई वो सिर्फ ''हराम''की। 
तमन्ना हैं इनको ना ' जाने किस जहान की। 

''इनकी नीतियों में पीस गई ,ज़िन्दगी आम इन्सान की। 
फिर भी आश्वासन देतें हैं ,हर बार नयें निर्माण की। 
''आंकी नहीं जाती ,कभी कीमत बलिदान की। 
तमन्ना होती हैं ''सरफरोशों को सिर्फ सम्मान की। 

**********राजेश कुमार ’’आतिश’’**********

Friday, 17 April 2020

देखते देखते

पुरे देश में जमातियों की शर्मसार हरकत को बयान करती देखते देखते गाने पर बनी पेरोडी 

''सोचता हूँ की वो तो ज़माती ही थे। . 
कब जिहादी हो गए देखते देखते। 
''हम पता पूछते हैं ज़मातियों का 
वो लापता हो गए। देखते देखते 

''हर्ष ऐ वहशियत और दिल की जिहादगी।
हम से पूछों जमातियों की दहशतगी।
''हमने बीमार समझ के बचाना चाहा।
वो पत्थर बाज़ हो गए देखते देखते। 

''सरकार ने उनसे यह वादा किया। 
ये ज़माती नाम लिस्ट से 'हट जाएगा। 
''था कोरोना केसों में ' ज़माती नाम जहाँ 
वो सिंगल सोर्स ' हो गए देखते देखते 


*************राजेश कुमार "आतिश"*************
 

Monday, 13 April 2020

मेरें देश में




''हर रोज़ बढ़ रही हैं बेरोज़गारी ''मेरे देश में ''
जनता है कर के बोझ में दबी भारी ''मेरे देश में "
''सरहद पर मरने वालो को मिलती है रेजगारी ''मेरे देश में ''
और करोड़ों का घोटाला करता ,नेता हैं भ्रष्टाचारी ''मेरे देश में ''


''जिनका रिश्वत बन गया हैं ईमान ''ऐसे कर्मचारी हैं  ''मेरे देश में ''
और जहाँ होती कभी पढाई नहीं ,वो स्कूल हैं सरकारी ''मेरे देश में ''
''यहाँ भूख से होती हैं मौत ,ऐसी व्यवस्था की लाचारी हैं ''मेरे देश में ''
और खुलेआम होती है आनाज की कालाबाजारी ''मेरे देश में ''

''कमर तोडती महंगाई की जनता है मारी ''मेरे देश में ''
थाली से दुर्लभ हो गई सब्जी तरकारी हैं ''मेरे देश में ''
''हजारों मौत का कारण  बन जाती हैं ,छोटी सी बिमारी ''मेरे देश में ''
दवाओं के दाम हैं कई गुना भारी ''मेरे देश में ''

''ताक में दुश्मन बैठा करने को सेंधमारी ''मेरे देश में ''
और अपने ही पहरेदार को टोकते करने से पहरेदारी ''मेरे देश में ''
''जाने इस व्यवस्था की कैसी हैं लाचारी ''मेरे देश में ''
सड चुका हैं ये सारा तंत्र जो हैं सरकारी ''मेरे देश में ''


*************राजेश कुमार "आतिश"**************

Saturday, 11 April 2020

यह कैसी आज़ादी हैं




 ‘’देश बेचने पर टूल जाए जब खुद खाड़ी हैं।
 तब बापू का वो चरखा यह पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’घायल हो लाहुलुहान पड़ी सालों से कश्मीर की वादी हैं।
उसका ज़र्रा ज़र्रा चीख के कहता यह कैसी आज़ादी हैं।

‘’जहाँ बच्चे भूख से मरते हो,और अनाज की होती बर्बादी हैं।
तब हर खेत खलिहान यह पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’जहाँ डोलियाँ उठने से पहले बोली लगे जाती हैं।
और बेटियाँ कोख में मरती हो,कहीं बहु जलाई जाती हैं।

 ‘’जिस समाज में बिना दहेज़ के होती नहीं शादी हैं।
तब हर रिश्ता रिश्तों से पूछें यह कैसी आजादी हैं।
 ‘’सहते सहमे लोगो की उम्मीद बच्ची अब आधी हैं।
तब हर दाता अपने मत से पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।

 ‘’जब षड्यंत्र खोलने वाले खुद करने लगे साज़िश हैं।
तब आतिश सबसे यह पूछे यह कैसी आज़ादी हैं।
‘’जो समाज भुला देता हैं अपने शहीदों की कुर्बानी हैं।
और सुनाई नहीं देती हैं जिनको क्रांतिकारियों की वाणी हैं।

‘’अपना लहू बहाक्र जिन्होंने हम को दी आज़ादी हैं।
उनका कतरा कतरा चीख के कहता यह कैसी आज़ादी हैं।                                                                                    


*************राजेश कुमार "आतिश"*************

Tuesday, 7 April 2020

क्या हाल हैं



‘’पुछ ज़रा खुद से तू 'क्यूँ देश का यह हाल हैं।
ज़रा ज़रा खुद से कह रहा 'वो क्यों बदहाल हैं।  
शोक हैं संताप हैं 'कोई भूख से बेहाल हैं।
पूछ मत तू खुद से कर 'क्या तेरा सवाल हैं।

‘’मच रहा गली गली 'अंजाना सा बवाल हैं।  
फिर भी पूछ रहा हर कोई 'कैसा आपका हाल हैं।   
किस के पीछे भग रहें 'ये कैसा भेडचाल हैं।  
नित्य नए घाट रहें यहाँ 'कृत्य और कमाल हैं।  

‘’मिट रही हैं ज़िन्दगी सस्ती और मौत मालामाल हैं।  
खिलते थे फूल जहाँ 'आज वो चमन कंगाल हैं।  
ताक में तैयार बेठा 'हर कदम पर काल हैं।
जश्न हो रहा मौत का और ज़िन्दगी पर मलाल हैं।  

‘’चलते कुछ ऐसी अनोखी इनकी चाल हैं।  
जिस्म पर खादी सजी ‘निचे रेशम की टाल हैं।  
वादें करते हैं यह कर दे देश को खुशहाल हैं।  
मल रखा चेहरे पर इन्होने देशभक्ति का गुलाल हैं।  

‘’आदमी बन गया आज कैसे हमाल हैं।  
बिक रही हैं सिसकियाँ और नीतियाँ कमाल हैं।  
बंधनों में जकड़ा हुआ यह कैसा मोह जाल हैं।
कैसे जी ले सुकून यहाँ ‘ज़िन्दगी में खलाल हैं।  

‘’ओढ़ राखी हैं जो तूने वो विकृत खाल हैं।
चीर के निकाल दे 'जो सड गई छाल हैं।  
अध् कटे लटक रही 'यहाँ मस्तको की डाल हैं।
और फुक दे प्राण उनमे 'जो पड़े बेहाल हैं।  

‘’जल पड़े दबी पड़ी सीने की ज्वाल हैं।  
गम रहें न फिर कोई कर दे खुद को हलाल हैं।  
चीर दे कहीं भी तू कैसा भी बिछा जाल हैं।  
आगे बढ़ कर शपथ तू खुद अपनी ढाल हैं।  

'’समेट ले बाँहों में नहीं दुनिया इतनी विशाल हैं।  
रुख मोड़ दे तू उसका जो वक्त की चाल हैं।
खून से लिख दे उसपे ‘जो तेरा भाल हैं।
कर दे तू आज खुद को इस चेतना में बहाल हैं।   

‘’हर रात बीत जाती हैं ‘फिर दिन का उजाल हैं।  
करता हैं जो खुद का ऐसा दूसरों का ख़याल हैं।  

*************राजेश कुमार "आतिश"**************